न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते
एनएसबीटी दर्शन हमारे चेयरमैन श्री नंदकिशोर कागलीवाल के सिद्धांतों में प्रतिबिंबित होता है. न ही ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते, यह बात भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद गीता (ईश्वर का गीत) के चौथे अध्याय के 38 वें श्लोक में कही है, जिसका शीर्षक है : समर्पण के साथ कार्य. इसके मायने यह कि इस संसार में आत्मज्ञान से बढ़कर कोई शुद्धता नहीं है. एक शैक्षणिक संस्था के रूप में यह संदेश देने के लिए कि सच्चा ज्ञान और कर्म प्रधान जीवन शुद्ध चरित्र निर्माण मेंं योगदान देते हैं, हमने इन पंक्तियों को अक्षरश: अंगीकार किया है.
चरित्र की आधारशिला पर निर्मित कर्मप्रधान जीवन हमारे विद्यार्थियों को जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव का धैयपूर्वक और दृढ़ निश्चय के साथ सामना करने में सहायता करेगा.
भगवद गीता (ईश्वर का गीत) पांच हजार साल से भी ज्यादा पुुरानी है. इस धर्मग्रंथ में विस्तृत रूप से परिपूर्ण जीवन जीने के तरीके का उल्लेख है. यहग्रंथ हमें जीवन के सभी क्षेत्रों में सच्चाई के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है. फिर चाहे संपत्ति अर्जित करना हो अथवा लक्ष्य और भौतिक इच्छाओं की पूर्ति हो, अंतत: वह स्वयं को सभी की एकता के लिए जागृत करता है. यह विज्ञान और तकनीक का मेल है जो स्पष्ट रूप से बताता है कि हमें सकारात्मकता के साथ कर्म प्रधान जीवन जीना चाहिए. स्व-बोध का यही एकमात्र रास्ता है